Dilon ko jeetne ka shauk

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Tuesday, June 17, 2008

**********सफर**********


मैं एक मुसाफ़िर मन्ज़िल की तलाश में भटक रहा हूं,
*
एक तन्हा सा सफ़र है जिस पर मैं चल रह हूं,
मुझे हमसफ़र का पता नही ना मन्ज़िल का ठिकाना
**
एक अजीब सी कश-म-कश में मैं चला जा रहा हूं,
ज़िन्दगी भी अब तो साथ छोडती नज़र आ रही है,
***
फिर भी मैं चलता जा रहा हूं यह कैसा सफ़र है,
जिसका ना कोई ठिकाना बस तन्हा चला जा रहा हूं,
****
कह्ते क्यूं हैं लोग इस वीरान सफ़र को मोहब्बत,
यह मुझ को पता नही फिर भी मैं चला जा रहा हूँ

6 comments:

Anonymous said...

excelent sir
sabhi logon ka ka haal yahi aur shayad zindagi bhi yahi hai.ek aisi paheli jiska hal sab khojte hain par alag-2 jawab paate hain.........

Raj said...

बहुत शुक्रिया श्री अशीष जी
ता-उम्र खोजते रहे जिन्दगी को हम शायद इस तरह?

तुम कब मिली थी, कहां बिछडी थी, हमें याद नही,
ऐ प्रिय जिन्दगी, तुझको तो बस ख्वाब में देखा हमने।

Uttam said...

कह्ते क्यूं हैं लोग इस वीरान सफ़र को मोहब्बत,
यह मुझ को पता नही फिर भी मैं चला जा रहा हूँ

These two lines are excellent..

Raj said...

उत्तम जी, होसला अफ़जाई का शुक्रिया
मैं तो यह ही कह सकता हूं:-

"कैसे मुम्किन है धुआँ भी ना हो और दिल भी जले,
चोट पडती है तो पत्थर भी सदा देते है"|

lucky 20 said...

bhaut ache uncle jii aaj ki zindgi ki sachi pata chal rahi hai

lucky 20 said...

bhaut ache uncle jii aaj ki zindgi ki sachi pata chal rahi hai