हाल-ए-दिल तमाम लिख भेजा ।
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मैंने पूछा तेरे होठ कैसे हैं,
उसने एक लफ़्ज "जाम" लिख भेजा।
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मैंने पूछा तेरे बाल कैसे हैं,
उसने कुदरत का इनाम लिख भेजा।
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मैंने पूछा कब होगी मुलाकात,
उसने कयामत की शाम लिख भेजा।
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मैने पूछा इतनी तडफ़ती क्यों हो,
उसने जवानी का इन्तकाम लिख भेजा।
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मैंने पूछा तेरे खुद-ओ-ख्याल कैसे हैं,
उसने तो हुशन तमाम लिख भेजा।
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मैंने पूछा तुझे नफ़रत किस से ,
ऐ - खुदा उसने मेरा ही नाम लिख भेजा
***
जलने के अलावा चारा नहीं
*
गरमी-ए-हसरत के नाकाम से जलते हैं,
हम चिरागों की तरह हर शाम से जलते हैं
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जब आता है नाम तेरा मेरे नाम के साथ,
न जाने कितने लोग हमारे नाम से जलते हैं
1 comment:
जो तुमने दिया मुझे उसे हम याद करेंगे,
हर पल तुमसे मिलने की फ़रयाद करेंगे,
चले आना ज़ब कभी ख्याल आजाये मेरा,
हम रोज़ ख़ुदा से पहले तुम्हें याद करेंगे..
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