कभी आ के मेरे ज़ख्मों का दीदार कीजिये।
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हो जायें बेगाने आप शौक से सनम,
आपके हैं आपके रहेंगे एतबार कीजिये।
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पढने वाले ही डर जायें देख कर इसे,
किताब-ए-दिल को इतना ना दागदार कीजिये।
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ना मजबूर कीजिये कि मैं उनको भूल जाऊं,
मुझे मेरी वफ़ाओं का ना गुनाहगार कीजिये।
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इन जलते दीयों को देख कर न मुस्कुराइये,
जरा हवाओं के चलने का इन्तज़ार कीजिये।
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गुलाबों से मुहब्बत है जिन्हें उनको खबर कर दो,
चुभा करते वो कांटे भी बहुत अरमान रखते हैं
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बहारों के ही बस आशिक नहीं ये जान लो,
ख़िज़ाँ के वास्ते भी दिल में हम सम्मान रखते हैं
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