कभी वह सिर्फ़ हम पर ही मरती थी,
बे पनाह मुझे मोहब्बत किया करती थी।
***जाने किस की नज़र लग गई उस रिश्ते को,
वह फ़िर तो अब मेरे नाम से ही डरती थी।
***बेवफ़ा कहें उसे या फ़िर वक़्त की मेहरबानी,
वह चली गई जो हर वक़्त दिल में रहती थी।
***हमारा क्या है यह ज़िन्दगी हम तो गुजार लेंगे,
यह दिल तो बस उनके लिये ही फ़िक्र करता था।
***वह मासूम नहीं बीमार-ए-दिल से मज़बूर थी,
ज़ो शायद हमसे बेह्तर की तलाश करती थी।
***यह तो वक़्त बतायेगा किसकी मंज़िल कहां है,
इस तरह वह शख्स शायद हक़ीक़त से डरती थी।
***
इस वीरानी में भुलाये से भी नहीं भूलते हैं वह दिन,
कोई जब "प्रियराज" को अपनी ज़ान कहा करती थी।
(प्रिया जी से साभार)
3 comments:
Girrajji,
aap ki kavita bhut hi aachi hai.
Kiski yaad mein likhi hai sir,
Jara unke naam ka to jikr kiya hota!!!!!!
उत्तम जी !
बडा मुश्किल सवाल है जिसका जवाब मिलेगा जरूर.......!
परिन्दों को मंज़िलें मिलेंगी यकीनन,
ये फ़ैले हुये उनके पंख बोलते हैं
वो लोग रह्ते हैं खामोश अक्सर,
जमाने में जिनके हुनर बोलते हं...
"प्रियराज"
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