तू मेरी हूर होती मैं भी होता तेरा खुदा,
जो मेरा पैमाना तू ना तोडती हर शाम,
मेरे हाथ दुआ को उठ भी नहीं पाए कि,
खुद हाथ मेरे वो जाम आ गया हर शाम,
तेरे वास्ते हम भी ताजमहल बनवा देते,
गर मेरे मज़ार पे आ गयी होती हर शाम !
जो मेरा पैमाना तू ना तोडती हर शाम,
मेरे हाथ दुआ को उठ भी नहीं पाए कि,
खुद हाथ मेरे वो जाम आ गया हर शाम,
तेरे वास्ते हम भी ताजमहल बनवा देते,
गर मेरे मज़ार पे आ गयी होती हर शाम !
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