मुझे हमसफ़र का पता नही ना मन्ज़िल का ठिकाना
ज़िन्दगी भी अब तो साथ छोडती नज़र आ रही है,
जिसका ना कोई ठिकाना बस तन्हा चला जा रहा हूं,
यह मुझ को पता नही फिर भी मैं चला जा रहा हूँ
"Falak Ko Zidd Hai Jahan Bijliyaan Giraane Ki............. Hume Bhi Zidd Hai, Wahin Pe Aashiyaan Banane Ki........" तुम्हें जब मिले कभी फ़ुर्सत मेरे दिल से बोझ उतार दो, मै बहुत दिनों से उदास हूं मुझे भी कोई शाम उधार दो....!
तेरी आंखों की गहराई में आज डूब जाने दे,
जो ना कह सका लफ़्ज़ों में आंखों से बताने दे,
जरूरी नहीं कि सभी ख्वाहिशें पूरी हों मेरी,
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पर हसरत है क्या मेरी अब मुझको जताने दे,
कब शुरु हुआ था आंखे चुराने का सिलसिला
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पहली दफ़ा नज़रों से तेरे मुझे निगाह मिलाने दे,
तेरी पायल की आवाज गूंजती कानों में रात भर,
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कि आज चुपके से मुझे उनके घुंघरू हटाने दे !
इन रेशमी बालों ने सताया है ख्वाबों में मुझे,
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आज हक़ीकत में मुझे ज़रा उनको संवारने दे,
गम सहने की आदत खुद को डाली है हमने,
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दे तेरे गमों को सारे उन्हे मुझमें समाने दे,
खुशियों को मैने संजोया है आज तक तेरे लिये,
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सभी खुशियों को मेरी मुझे तुझ पर लुटाने दे,
माफ़ करना मेरे मौला मुझे हट गया हूं मक्सद से,
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ताकत दे मुझे आज मेरे जज्बात उनको सुनाने दे,
इस पार से उधर का मंज़र दिखता है हसीन बडा,
रहम कर मुझ पर कि मुझे उस जानिब तो आने दे !
जब भी प्यार करते किसी को देखा हमने,
ना जाने क्यूं तुम्हारा हमारा मिलना याद आया
वो जंगल वो दरख्त वो रास्ते वो खामोशी,
जहाँ मिले थे हम तुम वो सब याद आया!
हुई थी शुरुआत जो अपने प्यार की,
जाना वो क़समें वह वादे वह सब याद आया!
चांदनी रात मैं वह तन्हा अपना मिलना,
वो रूठना मानना वह सब याद आया!
तन्हाई के दुवार पे जो बैठे थे हम,
दबे पाव तुम्हारा आना वह सब याद आया!
इक मुद्दत बाद हुआ मैखाने से गुज़रना,
सघर वह टुटा हुआ कांच वह जाम वह सब याद आया!
(प्रिया जी से साभार)