Dilon ko jeetne ka shauk

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Sunday, May 25, 2008

*****बरस जाओ एक दिन*****




मैं ख़ुद आता नही पर एक शायरी जगत की हस्ती द्वारा लाया गया हूँ
चहरे पर मेरे जुल्फ को फैलाओ किसी दिन
क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन

किसी शब दास्तक पे हाथ की खुल जाओ किसी दिन
पेडों की तरह हुश्न की बारिश मे नहा लूँ

बादल की तरह झूम के घिर आओ किसी दिन
खुश्बू की तरह गुजरो मेरे दिल की गली से

फूलों की तरह मुझ पे बिखर जाओ किसी दिन
फिर हाथ को खैरात मिले बंद-ऐ-काबा की

फिर लुत्फ़-ऐ-शब-ऐ-वस्ल को दोहराओ किसी दिन
गुजर ऐ इन जो मेरे घर तो रुक जाए सितारे

इस तरह मेरी रात को चमकाओ किसी दिन
मैं अपनी हर इक साँस उसी रात को दे दूँ

सर रख के मेरे सीने पे सो जाओ किसी दिन ......

2 comments:

Raj said...

तुमने सूली पे लटके जिसे देखा होगा,
वक़्त आयेगा वो ही शक्स मसीहा होगा,
ख्वाब देखा या कि सेहरा में बसना होगा,
क्या खबर थी कि यही ख्वाब का साया होगा,
में फ़िज़ाओं में बिखर जाऊंगा खुश्बू बनकर,
तब ना कोई रंग ना बदन ना चेहरा होगा....

Priyanka Srivastava said...

शबे-शिया में कोई रफीक़ न मिले तो पुकारना,

खिदमत में खादिम़ हाजिर रहेगा ।

न मिले सनम तो मिटूंगा इश्क में ऐसे,

कि खुदा से पहले जमाना मेरा नाम कहेगा ।