मेरी सादगी ही मेरा जुर्म है कोई और मेरी खता नही,
मैंने तो चाहा था सदा तुमको यह भी मेरी खता नहीं,
जाने कैसी अब हवा चली है रही दोस्ती में वफ़ा नहीं,
यहाँ जल गया मेरा आशियाना अभी बादलों को पता नहीं,
तेरे दर पर दस्तक दे सकूं यह हक़ तुमने दिया नहीं,
मैं राही हूँ राहें उम्मीद का मुझे मंजिलों का पता नहीं,
बेबस हूँ जहाँ में इस कदर जैसे इस जहाँ में मेरा कोई नही,
मेरी सादगी मेरा जुर्म है कोई और मेरी खता नहीं....!