Dilon ko jeetne ka shauk

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Tuesday, October 18, 2011

जला दो मुझको


फिर कहीं दूर से इक बार सदा दो मुझको,
मेरी तन्हाई का अहसास दिला दो मुझको.

तुम तो चाँद हो तुम्हे मेरी ज़रुरत क्या है,
मैं दिया हूँ किसी चौखट पे जला दो मुझको !


4 comments:

SAJAN.AAWARA said...

laajwaab ,,, kamal ka likha hai apne..
jai hind jai bharat

Raj said...

सजन जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.



मैं दिया हूँ किसी चौखट पे जला दो मुझको !
वाऽऽह ! गिरिराज जी बहुत ख़ूब !

मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Raj said...

श्री राजेन्द्र भाई,
आपका बहुत बहुत शुक्रिया !