फिर कहीं दूर से इक बार सदा दो मुझको,
मेरी तन्हाई का अहसास दिला दो मुझको.
तुम तो चाँद हो तुम्हे मेरी ज़रुरत क्या है,
मैं दिया हूँ किसी चौखट पे जला दो मुझको !
मेरी तन्हाई का अहसास दिला दो मुझको.
तुम तो चाँद हो तुम्हे मेरी ज़रुरत क्या है,
मैं दिया हूँ किसी चौखट पे जला दो मुझको !
4 comments:
laajwaab ,,, kamal ka likha hai apne..
jai hind jai bharat
सजन जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
.
मैं दिया हूँ किसी चौखट पे जला दो मुझको !
वाऽऽह ! गिरिराज जी बहुत ख़ूब !
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
श्री राजेन्द्र भाई,
आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
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