यह सावन भी दिल की तपती ज़मीन,
को 'प्यार' की फुहार ना दे सका,
बरसों से इस रेगिस्तान की ज़मीन,
पर थोड़ी प्रेम की ठंडक भी ना दे सका,
अँखियाँ अब भी ना थकी उसकी आस में,
राहत की जो एक झलक भी ना दे सका,
यह कैसी हरियाली है सावन की हर तरफ,
हमें एक बूँद ओस की भी ना दे सका.!
11 comments:
Haal-e-dil!
Behad Umda!
राहत की जो एक झलक भी ना दे सका !
अच्चा अंदाज़ है,
आज़ादी की वर्षगांठ एक दर्द और गांठ का भी स्मरण कराती है ..आयें अवश्य पढ़ें
विभाजन की ६३ वीं बरसी पर आर्तनाद :कलश से यूँ गुज़रकर जब अज़ान हैं पुकारती
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_12.html
यह दुनिया उम्मीद पर कायम है भरोसा रखिये जब वह सावन केवल आपके किये आएगा अच्छी रचना बधाई
...behatreen !!!
सावन के इस रूप की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
सर्वश्री आशीष, शहरोज़, सुनील, उदय और ब्रम्हांड जी,आपका शुक्रिया, ऐसे ही नाचीज़ का होसला अफजाई करते रहिएगा !
bahut khoobsoorat apki is rachna ke liye mere paas alfaj nahi hai
बहुत शुक्रिया ब्रजेश जी !
Bahut Hi achhi rachana hai.......Dil ko chho gaya
Sharma ji.....
nice Shayari
http://bihar.infozones.in
Thanks Dear Mishra ji & Gunjan Kumar ji !!
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