गुमनामियों मे रहना नहीं है कबूल मुझको,
चलना नहीं गवारा बस साया बनके पीछे,
वोह दिल मे ही छिपा है सब जानते हैं लेकिन,
क्यूं भागते फ़िरते हैं दायरो-हरम के पीछे,
अब “दोस्त” मैं कहूं या उनको कहूं मैं “दुश्मन”,
जो मुस्कुरा रहे हैं खंजर छुपा के अपने पीछे.....!!
1 comment:
Bhut achee sir kyaa likha hai...
wah wah....
Post a Comment