ख़ुद अपने लिए बैठ कर सोचेंगे किसी दिन,
यूँ है के तुझे भूल के देखेंगे किसी दिन,
बैठ के ही फिरते हैं कई लफ्ज़ जो दिल मैं,
दुनिया ने दिया वक्त तो लिखेंगे किसी दिन,
जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक,
आँखों में तेरी डूब कर देखेंगे किसी दिन,
खुसबू से भरी शाम मैं जुगनू के कलम से,
इक नज़्म तेरे वास्ते लिखेंगे किसी दिन,
सोयेगे तेरी आँख की खुलावत मैं किसी रात,
साए में तेरी जुल्फ के प्रियराज जागेंगे किसी दिन .......
5 comments:
Aapki harek rachnaa behad khoobsoorat hai...pehlee bar aayee hun, aapke blogpe...samajh nahee paa rahee ki, tippanee kahan karun..shayad harek rachnape karnee hogee...
Kayee baar padh chukee...ab any rachnaonpe jaake tippanee karne jaatee hun...
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
www.abhivyakti.tk
प्रिय शमा जी एवं गुप्ता जी, आपका बहुत बहुत शुक्रिया इस "नाचीज़" का हौसला बढाने के लिये....!!!
"जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक,
आँखों में तेरी डूब कर देखेंगे किसी दिन,"
बहुत सुन्दर....
रचना बहुत अच्छी लगी।
आप का ब्लाग भी बहुत अच्छा लगा।
आप मेरे ब्लाग वाह
पर आएं,आप को यकीनन अच्छा लगेगा।
खुसबू से भरी शाम मैं जुगनू के कलम से,
इक नज़्म तेरे वास्ते लिखेंगे किसी दिन
यह शेर बेहतरीन है ..... लाजवाब !!!
एक रुबाई पेश करना चाहूँगा, आपकी इस, ना भूलने वाली ग़ज़ल के लिए...
आलम ख्वाबे-जवानी का कुछ ऐसा न होता ,
जो उनकी निगाहों ने मुझे देखा न होता ||
सुकूने-दिल की जुस्तजू में, हम यूँ ही न भटकते,
जो उनकी अदाओं का दिल दीवाना न होता ||
शायर " अशोक "
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