Dilon ko jeetne ka shauk

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Friday, June 5, 2009

*******गुमनामी की ज़िन्दगी*******


गुमनामियों मे रहना नहीं है कबूल मुझको,
चलना नहीं गवारा बस साया बनके पीछे,

वोह दिल मे ही छिपा है सब जानते हैं लेकिन,
क्यूं भागते फ़िरते हैं दायरो-हरम के पीछे,

अब “दोस्त” मैं कहूं या उनको कहूं मैं “दुश्मन”,
जो मुस्कुरा रहे हैं खंजर छुपा के अपने पीछे.....!!


1 comment:

Unknown said...

Bhut achee sir kyaa likha hai...
wah wah....