उल्फत का अक्सर यही दस्तूर होता है
जिसे चाहो वही अपने से दूर होता है
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दिल टूटकर बिखरता है इस कदर,
जैसे कोई कांच का खिलौना चूर-चूर होता है,
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उसके साथ आज सारी महफिल है ,
अब ज़माना भी उसके साथ है,
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आज मैं तन्हा हूँ, अब मैं अकेला हूँ,
बस रुसवाईया ही मेरे साथ है...... .
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