Dilon ko jeetne ka shauk

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Friday, August 1, 2008

****गुजरा हुआ जमाना****


जो कह न सके वो फसाना याद आता है,
गुज़रा हुआ दिलकश जमाना याद आता है,


जब हुस्न से इश्क टकराया था कभी,
घायल हुआ था एक परवाना याद आता है,


दिल से मोहब्बत के तूफ़ान उठे थे,
जब आंखों का सपने सजाना याद आता है,


कस्तूरी जैसे दिन महकते थे,
मेरे रातों का गुनगुनाना याद आता है,


आंखों का मिल कर झुक जाना नहीं भुला,
होठों का थर-थराना याद आता है,


मेरा उसको कनखियों से देखना,
बार बार और उसका वो मुस्कुराना याद आता है,


रातों को तनहा याद में किसी की ( ...),
धुआं उडाता एक दीवाना याद आता है

1 comment:

"Nira" said...

दिल से मोहब्बत के तूफ़ान उठे थे,
जब आंखों का सपने सजाना याद आता है,

कस्तूरी जैसे दिन महकते थे,
मेरे रातों का गुनगुनाना याद आता है,

aisi hi hasratain hain jo machalti rahti hain
hume har waqt yaadon ke ghere lipti rahti hain

bahut achi ghazal hai. badhai