Dilon ko jeetne ka shauk

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Sunday, July 5, 2009

***मेरी कब्र***


मेरी कब्र पे आके तुम आवाज़ नहीं करना


दर्द की नई दास्ताँ का आगाज़ नहीं करना,
अपनी बेबस्सी को खुद ही बयान करेगी यूं,


चेहरे को किसी आईने का मोहताज नहीं करना,
राज़ जो खुद से ही ना छिपा पाओगी तुम,


ऐसे राज़ मे किसी को हमराज़ नहीं करना,
नामुमकिन है हकीकत के आसमान मे उड़ना,


खाबों के सहारे इसमें परवाज़ नहीं करना,
ज़ख्म फिर ज़ख्म हें इक रोज़ भर जायंगे,


हुश्न वालों को इनके चारासाज़ नहीं करना,
खाख से बनी हो खाख मे मिल जाओगी,


कभी भूले से भी खुद पे नाज़ नहीं करना....!