Dilon ko jeetne ka shauk

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Sunday, September 14, 2008

उमर भर का गम


आंखें भी वोही हैं दरीचा भी वोही है
और मन के आँगन में उतरता भी वोही है

जिसने मेरे जज्बों की सदाक़त को ना जाना,
अब मेरी रफाकात को तरसता भी वोही है ,

इस दिल के खराबे से गुज़र किस का हुआ है,
आँखें भी वोही है होंट भी लहजा भी वोही है

जो कुछ भी कहा था मेरी तनहाइयों ने मुझ से,
इस शहर की दीवार पे लिखा भी वोही है,

वोह जिस ने दिए मुझ को मुहब्बत के खजाने,
बादल की तरह आँख से बरसा भी वोही है,

साथ निभाने की कसमें खाई थी जिसने,
उम्र भर का गम दे के गया भी वोही है......!

Monday, September 8, 2008

*****दरिया के पार*****


मुद्दत से जिसके वास्ते दिल था बेक़रार,

वह लौट कर ना आयी मगर था इन्तज़ार,

***

जो हमसफ़र थी छोड गयी बीच राह में मुझे,

मैं फंस गया भंवर में वो थी दरिया के पार,

***

मन्ज़िल क़रीब आयी तब तुम दूर हो गई,

इतना तो तुम बताओ कि ये था कैसा प्यार,

***

दीवार बनादी किसी ने हम दोनों के दरमियां,

ना वो सुकून से बैठी ना मुझको था क़रार,

***

यह बात ही उमर भर समझ ना पाया मैं,

क्यूं था दिल मेरा उस बेवफ़ा का तलबगार ...